सृष्टि की उत्पत्ति
आगे सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में बताते हुए भगवान कहते हैं कि अर्जुन ! सात महर्षिजन (मरीचि, अडींगरा, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह, ऋतू और वशिष्ठ) और उनसे भी पूर्व में होने वाले चार सनकादि (सनक, संदन, सनातन और सनत्कुमार) तथा स्वयम्भुव आदि चौदह मनु ये सब मेरे संकल्प से उत्पन्न हुए हैं और इन्हीं की संसार में यह सम्पूर्ण प्रजा है। हे अर्जुन ! जो मनुष्य मेरी इस विभूति को और सामर्थ्य को तत्व से जान लेता है, वह अविचल भक्ति योग से मेरे से जुड़ जाता है, इसमें किसी भी प्रकार का कोई संशय नहीं है।
Further telling about the origin of the universe, God says that Arjuna! Seven Maharishijans (Marichi, Adingara, Atri, Pulastya, Pulah, Ritu and Vashishtha) and the four Sanakadis (Sanak, Sandan, Sanatan and Sanatkumar) and the fourteen Manus etc. Swayambhuva, all of them originated from my resolution and in these That this is the entire subject in the world. Hey Arjun! The person who knows this Vibhuti and power of mine from the element, he gets connected with me with unwavering devotional yoga, there is no doubt about it.
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महर्षि दयानन्द को अधिष्ठात्री देवों की सत्ता स्वीकार्य न थी। उनके द्वारा तत्कालीन यज्ञ परम्परा का घोर विरोध किया गया। अपने वेदभाष्य व सत्यार्थप्रकाश में उन्होंने देवतावाची पदों का सही अर्थ प्रस्तुत किया। सत्यार्थप्रकाश सप्तम समुल्लास में देवता की परिभाषा देते हुए महर्षि कहते हैं- देवता दिव्यगुणों...