जीवन और जगत
शिक्षा का सही मकसद है, व्यक्ति में अच्छे संस्कारों को बीजारोपण साथ ही उसे यथार्थ का ज्ञान देना। दुनिया वैसी ही नहीं है, जैसी कि हमें दिखाई देती है या बताई जाती है। व्यक्ति और समाज की समस्याएँ वही नहीं हैं जिनकी चर्चा की जाती रहती है। यथार्थ की तली तक पहुँचने के लिए किस प्रकार की गोताखोरी की जानी चाहिए, इसी कला को सिखाना शिक्षा का उद्देश्य है। भ्रान्तियों, विकृतियों, कुसंस्कारों के बन्धनों से छुटकारा पाकर अच्छे संस्कार एवं स्वतन्त्र चिन्तन की क्षमता पाना ही जीवन जीने का मकसद है। इसी से जीवन और जगत के यथार्थ स्वरूप का बोध होता है। तत्वदर्शियों ने इसी को मुक्ति कहा है, जिसे केवल संस्कारवान आत्माएँ ही प्राप्त करती हैं।
The true purpose of education is to inculcate good values in a person as well as to give him the knowledge of reality. The world is not the same as it appears or is told to us. The problems of the individual and the society are not the same which are discussed. The purpose of education is to teach the art of diving to reach the bottom of reality. The purpose of living life is to get rid of the bonds of illusions, perversions, bad culture and to get good manners and the ability to think independently. This is the realization of the real nature of life and the world. Philosophers have called this as liberation, which is attained only by cultured souls.
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महर्षि दयानन्द को अधिष्ठात्री देवों की सत्ता स्वीकार्य न थी। उनके द्वारा तत्कालीन यज्ञ परम्परा का घोर विरोध किया गया। अपने वेदभाष्य व सत्यार्थप्रकाश में उन्होंने देवतावाची पदों का सही अर्थ प्रस्तुत किया। सत्यार्थप्रकाश सप्तम समुल्लास में देवता की परिभाषा देते हुए महर्षि कहते हैं- देवता दिव्यगुणों...