पर्यावरण व प्रकृति
मनुष्य पृथ्वी की देन है, प्रकृति की देन है और वह पृथ्वी के बिना, प्रकृति के बिना जीवित भी नहीं रह सकता। पर्यावरण व प्रकृति के महत्व को देखते हुए ही हमारे ऋषियों व शास्त्रों ने प्रकृति व पर्यावरण के संरक्षण पर बल दिया है। दरअसल प्रकृति की पूजा का आशय प्रकृति के प्रति सम्मान, संवेदनशीलता व संरक्षण की भावना से ही है। वृक्ष, जल, वायु, पर्वत, सूर्य आदि की पूजा-उपासना का मूल दर्शन यही है कि हम प्रकृति की तरह निश्छल, निष्पाप व पवित्र बनें।
Man is a gift of earth, a gift of nature and he cannot survive without earth, without nature. Keeping in view the importance of environment and nature, our sages and scriptures have emphasized on the protection of nature and environment. In fact, the worship of nature means respect, sensitivity and protection towards nature. The basic philosophy of worshiping trees, water, air, mountains, sun etc. is that we should become innocent, sinless and pure like nature.
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महर्षि दयानन्द को अधिष्ठात्री देवों की सत्ता स्वीकार्य न थी। उनके द्वारा तत्कालीन यज्ञ परम्परा का घोर विरोध किया गया। अपने वेदभाष्य व सत्यार्थप्रकाश में उन्होंने देवतावाची पदों का सही अर्थ प्रस्तुत किया। सत्यार्थप्रकाश सप्तम समुल्लास में देवता की परिभाषा देते हुए महर्षि कहते हैं- देवता दिव्यगुणों...