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महर्षि दयानन्द को अधिष्ठात्री देवों की सत्ता स्वीकार्य न थी। उनके द्वारा तत्कालीन यज्ञ परम्परा का घोर विरोध किया गया। अपने वेदभाष्य व सत्यार्थप्रकाश में उन्होंने देवतावाची पदों का सही अर्थ प्रस्तुत किया। सत्यार्थप्रकाश सप्तम समुल्लास में देवता की परिभाषा देते हुए महर्षि कहते हैं- देवता दिव्यगुणों से युक्त होने के कारण कहाते हैं, जैसी कि पृथ्वी। परन्तु इसको कहीं ईश्‍वर वा उपासनीय नहीं माना है। महर्षि ने अपने वेदभाष्य में अग्नि, वायु आदि मंत्रों के देवतावाची पदों का अर्थ स्वर्ग विशेष में रहने वाले और मनुष्य आकृति के किसी प्राणी के रूप में नहीं किया है। अपितु प्रकरण के अनुसार मंत्रों में प्रयुक्त विशेषण के आधार पर जगत सृष्टा परमात्मा, राष्ट्र का शासक, राज्य कर्मचारी, अध्यापक, उपदेशक और जगत में प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले अग्नि, वायु, जल, आकाश आदि जड़ पदार्थों के रूप में किया है। चारों वेदों का अध्ययन करने पर कहीं पर भी ऐसा उल्लेख नहीं मिलता है कि अग्नि, वायु, जल आदि जड़ पदार्थों के मनुष्य जैसे शरीरधारी चेतन अधिष्ठात्री देवता भी पाये गये हों। इस प्रकार पारम्परिक यज्ञकर्त्ताओं  की यह धारणा कि यज्ञों में मंत्रों के द्वारा देवताओं को आहूत करने पर वे आकर हवि का भक्षण करते हैं और इस कृत्य से प्रसन्न होकर यज्ञकर्त्ता का कल्याण करते हैं, वेद के प्रतिकूल है। महर्षि ने अपने वेदभाष्य से यह सिद्ध कर दिया कि वेद में वर्णित देवताओं का वह स्वरूप नहीं है जो मध्यकाल के विनियोगकारों और सायणाचार्य आदि भाष्यकारों ने वर्णित किया है।

The power of presiding deities was not acceptable to Maharishi Dayanand. He strongly opposed the then Yagya tradition. In his Vedabhashya and Satyarthprakash, he presented the true meaning of the divine verses. While giving the definition of deity in Satyarthprakash Saptam Samullas, Maharishi says – Deity is called because of being endowed with divine qualities, like the earth. But it is not considered God or worthy of worship anywhere.

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  • देवताओं द्वारा हवि का भक्षण

    महर्षि दयानन्द को अधिष्ठात्री देवों की सत्ता स्वीकार्य न थी। उनके द्वारा तत्कालीन यज्ञ परम्परा का घोर विरोध किया गया। अपने वेदभाष्य व सत्यार्थप्रकाश में उन्होंने देवतावाची पदों का सही अर्थ प्रस्तुत किया। सत्यार्थप्रकाश सप्तम समुल्लास में देवता की परिभाषा देते हुए महर्षि कहते हैं- देवता दिव्यगुणों...

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